पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि हिमालय के पहाड़ सबसे नए हैं. इसलिए ये कच्चे हैं. इन पर ज्यादा दबाव खतरनाक है.
Joshimath Sinking – पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि जोशीमठ ही नहीं हिमालय पर्वत श्रृंखला के ज्यादातर पहाड़ कचरे और …अधिक पढ़ें
हाइलाइट्स
हिमालय के पहाड़ अभी शैशव अवस्था में हैं. इन्हें कचरे और मलबे का ढेर भी कहा जा सकता है.
हिमालय की तलहटी के जंगल पहाड़ों के लिए स्पंज का काम करते थे. इन्हें काटना खतरनाक है.
JoshiMath Sinking – जोशीमठ में मकानों में दरारें और जमीन के धसान ने हालात बिगाड़कर रख दिए हैं. भारत ही नहीं, सारी दुनिया की नजरें इस समय जोशीमठ पर टिकी हुई हैं. हालात इतने खराब हैं कि पूरे के पूरे जोशीमठ को किसी दूसरी जगह शिफ्ट करने की नौबत आ गई है. हालात को देखते हुए सभी तरह के निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है. लेकिन, ऐसे में ये देखना भी जरूरी है कि जोशीमठ जैसे हालात और कौन से हिल स्टेशनों पर बन रहे हैं. जोशीमठ जैसे हालात मसूरी (Mussoorie) में भी बन रहे हैं. यही नहीं, गंगटोक (Gangtok) में भी पिछले कई साल जमीन लगातार धंस रही है.
सबसे पहले बात करते हैं मसूरी की. अंग्रेजों ने पानी की सप्लाई के लिए मसूरी के ठीक ऊपर गनहिल पर एक जलाशय बनाया. इसे मसूरी की पानी की टंकी कहा जाता है. अंग्रेजों ने इसे 1902 में बनाना शुरू किया था और 1920 में ये तैयार हो गया था. इसे बने हुए 100 साल से ज्यादा हो गए हैं. अब इसमें दरारें पड़ने लगी हैं, लेकिन इन पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. पर्यावरण कार्यकर्ता और टेक इनसाइट के संस्थापक पंकज भंडारी का कहना है कि ये टंकी कभी भी फट सकती है. इससे मसूरी को बड़ा नुकसान पहुंचा सकती है.
मसूरी से गनहिल्स जाने के लिए रोपवे बनने से लोगों की आवाजाही बढ़ने से हालात और खराब हो रहे हैं. (फोटो साभार: Mussoorie Tourism)
पानी की टंकी फटी तो होगा बड़ा नुकसान
पंकज भंडारी ने बताया कि मसूरी नगरपालिका ने साल 1975 में इसे उत्तर प्रदेश सरकार (तब उत्तराखंड नहीं बना था और मसूरी उत्तर प्रदेश में आता था.) को सौंप दिया था. इसके बाद जब इसमें दरारें पड़ने लगीं तो 1992 में एक निजी कंपनी ने इसकी मरम्मत की थी. इसके बाद से इसमें कभी मरम्मत नहीं की गई. इसके आसपास दुकानें खोल दी गईं. काफी लोग भी इसके आसपास रहते हैं. अगर ये पानी की टंकी फटी तो आसपास बनी दुकानों और मकानों ही नहीं, मसूरी की कचहरी और थाने को भी बड़ा नुकसान होगा
पर्यटकों के आराम के लिए बना डाला रोपवे
पर्यावरण कार्यकर्ता भंडारी ने ने कहा कि अब गनहिल के लिए रोपवे भी चल रही है. इससे पर्यटकों की आवाजाही भी बहुत बढ़ गई है. वहीं, सबसे मजेदार ये है कि पहले गनहिल पर बने इसे जलाशय के नीचे एक बोर्ड लगा था, जिस पर लिखा था, ‘यहां पर्यटकों का आना प्रतिबंधित है.’ अब राज्य सरकार ने इस बोर्ड को भी यहां से हटाकर ऊपर की तरफ लगा दिया है, जिसका कोई औचित्य ही नहीं रह गया है. उन्होंने कहा कि मसूरी शहर को इसके अलावा सामने की गगोली पावर हाउस स्टेशन हिल से भी बड़ा खतरा है.
गलोगी पावर हाउस हिल अगर गिरी तो मसूरी का देहरादून से संपर्क पूरी तरह से कट जाएगा.
सालों से दरक रही गलोगी पावर हाउस हिल
पंकज भंडारी ने बताया कि गलोगी पावर हाउस हिल पिछले 8-9 साल से लगातार दरक रही है, लेकिन उस पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है. उनका कहना है कि अगर ये पहाड़ी गिरी तो मसूरी का देहरादून से संपर्क पूरी तरह से कट जाएगा. इसके अलावा जोशीमठ की ही तरह मसूरी शहर की जमीन भी धंसने लगी है. मुख्य बाजार की सड़क चौड़ाई में काफी लंबाई तक आधी धंस चुकी है. वहीं, जिन जगहों पर जमीन धंस रही है, वहां मकानों के नीचे कई-कई इंच खाली जगह बन गई है. कभी भी इसकी वजह से मकानों में दरारे पड़ सकती है.
कचरे-मलबे का ढेर हैं हिमालय के पहाड़
पर्यावरण कार्यकर्ता राजीव नयन बहुगुणा ने जोशीमठ या मसूरी की जमीन के धंसने का कारण बताया. उन्होंने कहा कि हिमालय के पहाड़ अभी अपनी शैशव अवस्था में हैं. इन्हें कचरे और मलबे का ढेर भी कहा जा सकता है. सिर्फ जोशीमठ ही नहीं मसूरी, गंगटोक, जम्मू, नैनीताल, भीमताल जैसे तमाम हिमालयी हिल स्टेशंस में जमीन धंसने या दरकने की समस्या आम है. उन्होंने कहा कि धरासू से लेकर भैरव घाटी तक उत्तरकाशी की पूरी बेल्ट में आए दिन सड़कों के धंसने की घटनाएं होती रहती हैं. पिछले कुछ साल में ही गंगटोक की जमीन करीब 7 इंच तक धंस चुकी है.
पहाड़ों के स्पंज को काटना है खतरनाक
राजीव नयन बहुगुणा ने कहा कि पुरानी टिहरी को डुबोकर नई टिहरी बनाई गई. इसे बसाने के लिए जंगल काटकर सीमेंट कंक्रीट का कंस्ट्रक्शन किया गया. ये जंगल हिमालय के लिए स्पंज का काम करते थे. इन्हें काटना खतरनाक है. इन जंगलों की वजह से ही मैदान की गर्म हवाएं पहाड़ों तक नहीं पहुंच पाती थीं. उन्होंने कहा कि अंग्रेंजों के कंस्ट्रक्शन में कहीं भी आपको पक्की छत नहीं मिलेगी. वे कंस्ट्रक्शन में लकड़ी का इस्तेमाल करते थे, जिसकी छत टीन की होती थीं. इससे पहाड़ों पर भार नहीं पड़ता था.
भारी कंस्ट्रक्शन पर तुरंत लगाएं रोक
आजाद भारत में पहाड़ों पर किए गए नए ज्यादातर निर्माण में सीमेंट कंक्रीट के भारी कंस्ट्रक्शन किए गए. अगर पहाड़ों को बचाना है तो भारी निर्माण कार्यों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए. पर्यटकों पर रोक तो नहीं लगाई जा सकती है, लेकिन उनको पहाड़ों पर जाते समय ये भी समझना होगा कि उन्हें कम से कम सुविधाओं में काम चलाना चाहिए. पर्यटकों की डिमांड को पूरा करने के लिए भारी निर्माण ना किया जाए तो काफी हद तक पहाड़ों पर दबाव को कम किया जा सकता है. पहाड़ों की तलहटी के तराई इलाकों में जंगलों को ना काटा जाए.
टाइम बम पर बैठा है जोशीमठ, इसका तबाह होना तय; जानिए एक्सपर्ट क्यों कह रहे हैं ऐसी बात
जोशीमठ के हालात के बारे में आप सब जानते हैं. यहां जमीन लगातार धंस रही है और जगह-जगह पानी निकल रहा है. जोशीमठ के हालात कैसे हैं और अब क्या किया जा सकता है. जानें इस पर एक डिटेल रिपोर्ट.
उत्तराखंड के चमोली जिला स्थित जोशीमठ की खबरें आपने पिछले कुछ दिनों में काफी सुनी और पढ़ी होंगी. यहां की स्थिति भयावह है. यहां तमाम मकानों में दरारें पड़ चुकी है. जमीन लगातार धंस रही है और जहां-तहां से पानी की क्षीर (सोते) फूट रहे हैं. कल ही यानी शुक्रवार को एक मंदिर, जिसमें पिछले काफी दिनों से गहरी और मोटी दरारें पड़ी हुई थीं, वह गिर गया. जोशीमठ के मुख्य पोस्ट ऑफिस को दरारों के चलते वहां से दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया गया है. देहरादून से एक टीम वहां हालात का जायजा लेने भी पहुंची थी, आज यानी शनिवार 7 जनवरी को मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी यहां का दौरा किया. हालात भयावह हैं, अभी कोई भले ही कुछ न कह रहा हो, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि जोशीमठ एक टाइम बम पर बैठा है, जिसका तबाह होना तय है.
जोशीमठ को अब कोई नहीं बचा सकता
जोशीमठ को लेकर जितनी डराने वाली खबरें आप देख और सुन रहे हैं, उससे भी भयानक सत्य ये है कि जोशीमठ का ज्यादातर हिस्सा बहुत लंबे समय तक नहीं बचेगा. इस शहर का ज्यादातर हिस्सा तबाह हो जाएगा. फिलहाल जोशीमठ को कोई भी ताकत नहीं बचा सकती. इसलिए अब कोई रिपोर्ट या साइंस काम नहीं करेगी, बल्कि अब हमारा प्रमुख लक्ष्य यहां रह रहे लोगों की जान बचाना होना चाहिए. जोशीमठ में पहले जमीन धंसने की रफ्तार कम थी, लेकिन अब यह प्रक्रिया काफी तेज हो चुकी है. इसलिए हो सकता है कि किसी दिन आपको अचानक खबर मिले कि वहां किसी इलाके में 50-60 घर एक साथ ढह गए हैं. इसलिए अभी हमारा प्रमुख लक्ष्य वहां से लोगों को बचाकर किसी सुरक्षित जगह पर लेकर जाना होना चाहिए. जोशीमठ के ज्यादातर हिस्से को आप अब किसी भी हालात में बचा नहीं पाएंगे. अगले 1-2 साल तक यहां जमीन धंसाव की प्रक्रिया तेज भी होगी और जारी रहेगी. यह सब हम नहीं कर रहे, बल्कि यह कहना है डिपार्टमेंट ऑफ फॉरेस्ट्री, रानीचौरी (टिहरी) के एचओडी और जियोलॉजिस्ट डॉ. एसपी सती का.
ये है जोशीमठ की तबाही का इतिहासिक प्रमाण
जोशीमठ के बारे में कहा जाता है कि यह शहर मोरेन पर बसा है बता दें कि मोरेन ग्लेशियर के मलवे के जमाव से बनते हैं. लेकिन डॉ. सती का कहना है कि जोशीमठ मोरेन पर नहीं बल्कि लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा है. उन्होंने 1939 में छपी पुस्तक सेंट्रल हिमालय का जिक्र किया और बताया कि इस किताब में प्रोफेसर हेम और प्रोफेसर ग्रांडसन (स्विस जियोलॉजिस्ट) ने यहां रिसर्च के बाद लिखा था कि जोशीमठ एक लैंडस्लाइड मटेरियल पर बसा है. उन्होंने ऐतिहासक तथ्य का जिक्र करते हुए बताया कि 1000 साल पहले भी यहां लैंडस्लाइड की वजह से तत्कालीन जोशीमठ गांव या कस्बा तबाह हो चुका है और उस समय यहां के कत्यूर राजाओं को अपनी राजधानी दूसरी जगह शिफ्ट करनी पड़ी थी. इसके अलावा 1976 में जोशीमठ में भूस्खलन की कई घटनाएं हुई थीं. उस समय उत्तर प्रदेश सरकार ने गढ़वाल कमिश्ननर महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का निर्माण किया और इस कमेटी ने एक रिपोर्ट बनाई. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि यहां पर कंस्ट्रक्शन के कार्य पर रोक लगाई जानी चाहिए. यहां जमीन में जो बड़े-बड़े पत्थर (बोल्डर) हैं उन्हें बिल्कुल भी नहीं छेड़ना चाहिए.
क्यों तबाही की कगार पर है जोशीमठ? – Joshimath Kyu Doob Raha Hai
सरकार ने और आम लोगों ने भी मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट को दरकिनार किया और यहां बड़े-बड़े कंस्ट्रक्शन किए गए. आईटीबीपी और सेना की बटालियनों के लिए निर्माण हुए, साथ ही बदरीनाथ, हेमकुंड साहिब मार्ग का मुख्य शहर होने की वजह से यहां बड़े-बड़े होटल भी बन गए. लेकिन यहां ड्रेनेज की कोई व्यवस्था नहीं है. घरों और होटलों का पानी यहीं जमीन में रिसता रहता है. पहाड़ों में हो रहे अनियंत्रित निर्माण और सड़क परियोजनाओं की वजह से प्रकृति को ऐसा नुकसान पहुंचा है, जिसे वापस ठीक नहीं किया जा सकता. डॉ. सती का कहना है, ‘जोशीमठ में जो हो रहा है, वह देर-सबेर होना ही था.’ वह तो जोशीमठ को टाइम बम करार देते हैं. डॉ. सती कहते हैं 2013 की आपदा के बाद यहां ज्यादा कुछ नहीं हुआ, लेकिन फरवरी 2021 में आई ऋषिगंगा आपदा के बाद जोशीमठ और आसपास के इलाकों में जमीन धंसने की रफ्तार तेज हो गई है. जिसकी वजह से आज जोशीमठ में हर तरफ दरारें दिख रही हैं और जगह-जगह जलस्रोत फूटे हुए हैं.
डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर (DMMC) देहरादून के एग्जक्यूटिव डायरेक्टर पीयूष रौतेला से भी हमने इस संबंध में बात की. उन्होंने बताया कि यहां पानी की ही समस्या है. यहां घरों और होटलों का पानी जमीन के अंदर जा रहा है और ड्रेनेज सिस्टम ठीक नहीं होने की वजह से जमीन धंस रही है. हालांकि, रौतेला जी का कहना है कि विष्णुगाड़ परियोजना की वजह से नुकसान की जो बातें कही जा रही हैं, वह बेबुनियाद हैं. उन्होंने कहा कि जोशीमठ शहर लैंडस्लाइड मैटेरियल पर बसा है, यहा मैटेरियल इतना लोड नहीं ले सकता है. जबकि हमारे पूर्वज बहुत स्मार्ट थे, वह पक्की जमीन पर रहते थे और लैंडस्लाइड मैटेरियल पर खेती करते थे. आज हम इसी जमीन पर 5-7 मंजिला भवन बना रहे हैं, जबकि इसकी लोड लेने की कैपेसिटी इतनी है ही नहीं.
14 साल से सुरंग में फंसी है टनल बोरिंग मशीन
तपोवन परियोजना के तहत साल 2009 में यहां टनल बनाने के दौरान एक टनल बोरिंग मशीन यहां फंस गई थी. इस बोरिंग मशीन की वजह से वहां 250 क्यूसेक पानी का जलस्रोत पंक्चर हो गया था. इस समय जोशीमठ में जगह-जगह से जो पानी निकल रहा है, उसकी वजह यही घटना भी हो सकती है. अगर जमीन से पानी निकल जाएगा तो पानी निकलने के कारण जो जगह खाली होगी, उसमें मिट्टी घंस सकती है, जो अभी जोशीमठ में भी हो सकता है. क्योंकि तपोवन परिजोना की टनल पूरी नहीं हुई और इसकी वजह से उस टनल में जो पानी है वह भी जमीन की दरारों में घुसकर भूधंसाव को बढ़ावा दे सकता है.
डॉ. सती ने एक कमेटी का सदस्य होते हुए जोशीमठ में जो जांच की थी, उसकी रिपोर्ट यही थी कि वहां पर मिश्रा कमेटी अनुशंसाओं की अवहेलना करते हुए अनियंत्रित निर्माण हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ में ड्रेनेज का मैनेजमेंट बहुत खराब है और जोशीमठ के नीचे बहने वाली अलकनंदा भी कटाव कर रही है. इसके अलावा यहां बिछे सड़कों के जाल को भी रिपोर्ट में जोशीमठ के हालात के लिए संभावित कारण माना गया है.
भूकंप भी हैं वजह ?
क्या जोशीमठ के हालात के लिए भूगर्भीय हलचलें या भूकंप हो सकते हैं? इस प्रश्न के जवाब में डॉ. सती ने कहा कि तत्काल तो कोई भूगर्भीय हलचल इसका कारण नहीं है. बता दें कि इस इलाके में साल 1999 में बड़ा भूकंप आया था. इसके अलावा छोटे-छोटे भूकंप आते रहते हैं, जिसकी वजह से जमीन के अंदर की दरारें बड़ी होती जाती हैं और उनमें पानी भर जाता है. इनकी वजह से सीपेज होती है और फिर इन्हीं दरारों के आसपास जमीन धंसती है.
इन शहरों का भी हाल जोशीमठ जैसा होगा
डॉ. सती के अनुसार जोशीमठ जैसा ही हाल देर-सबेर इन शहरों या गांवों का भी होगा. वह कहते हैं कि यह गांव या शहर टाइम बम पर बैठे हैं, यहां तबाही होना तय है. इनमें से वह कुछ नाम बताते हैं – भटवाड़ी, धारचूला, मुनस्यारी, गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, पौड़ी, थराली, नैनीताल, धर्मशाला (हिमाचल) और सैकड़ों गांव इस लिस्ट में हैं. वह बताते हैं कि नैनीताल, गोपेश्वर, धारचुला, मुनस्यारी, अगस्त्यमुनी, पौड़ी आदि में आपको भविष्य की इस तबाही के निशान कई बार दिखे भी हैं. भटवाड़ी के बारे में वह कहते हैं कि यहां तो पूरा पहाड़ ही नीचे की ओर आ रहा है.